toll tax excuse for army navy airforce

टोल टैक्स जब से Fast Tag आया है यह मुद्दा काफी बार उठा।  इसमें डेवलपमेंट हुए और अंत तक कोई रिजल्ट निकाला नहीं।  कानून कुछ कहता है तो टोल पर ड्यूटी करने बालो का कहना कुछ और  है।   जवानों के साथ कई जगह पर बड़ी नाइंसाफी होती है।  मारपीट तक होती है।  कई बार कई अधिकारियों के साथ भी बदतमीजी हुई है।  टोल टैक्स के मामले में अब टोल टैक्स पर एक कोर्ट का बड़ा ही बेहतरीन फैसला निकाल के आया  है जवानों के हित  में तथा  सैनिकों के हित में।  उसमें  स्पस्ट रूप से कहा गया है की टोल टैक्स लेने वालों पर 10,000 रुपए का जुर्माना लागु होगा।  

यानी की जवान से टोल टैक्स लेने के कारन टोल टैक्स के कर्मचारी के ऊपर, टोल टैक्स एजेंसी के ऊपर, कंपनी के ऊपर 10000 रुपए का जुर्माना लगा है।   और कोर्ट में केस फाइल करने के लिए 3000 रुपया जो खर्चा हुआ  है उसका भी दंड दिया है।  यह कोर्ट का ऑर्डर निकाल कर आया है।  अब दोस्तों यहां मुद्दा यह आता है की यह मुद्दा आखिर है क्या ? अदालत जुर्माना लगाती है – सरकार ने फ़ौजिओं के लिए टोल टैक्स एक्सेम्प्टेड किया हुआ है फिर भी  कई बार फ़ौजिओं को मुस्किलो का सामना करना परता है।   

कुछ और इनफॉरमेशन निकाल के आई है जब मुद्दा यह कोर्ट में गया तो वहां पर कुछ और फैक्ट्स निकाल के आया  यानी की जो प्रॉपर इनफॉरमेशन है , जो पॉलिसी हैं,  वो कहानी लोगों तक पहुंचती नहीं है।   उनका ठीक से प्रचार-प्रसार नहीं होता है।   टोल टैक्स एजेंसी के पास रूल रेगुलेशन नहीं है और अगर है तो वह   मान ने के तैयार नहीं हैं।  मिनिस्ट्री ऑफ़ रोड ट्रांसपोर्ट का इंस्ट्रक्शंस भी है फिर भी तल एजेंसी उसे मानते नहीं है।   इस बारे में पहले ही इस वेबसाइट में लेटर एंड अथॉरिटी पब्लिश किया गया है।  

एक एक करके इस पर चलते हैं क्यों उलझा हुआ है ये मुद्दा और क्यों कोर्ट ने टोल टैक्स लेने वालों पर लगाएं जुर्माना।    कोर्ट ऐसा क्या पाया की टोल टैक्स जो काटा वो भी वापस कराया और जुर्माना भी लगाया ? और टोल टैक्स लेने वालों के पास में ऐसा क्या  अथॉरिटी है , क्या हथियार है की वो टोल टैक्स लेते हैं और जो रूल रेगुलेशन है उसको नहीं मानते ? 

यह साड़ी चीज डिटेल में  जानिए।  जिला सीकर राजस्थान का यह है जिला उपभोक्ता विवाद यानी की जिला कंज्यूमर फोरम में यह कैस चला और कैसे किसने अपील  किया है  जानिए।  चौधरी जी पुत्र श्री सुखवीर जी यह भारतीय बायु  सेना में फ्लाइंग ऑफिसर्स के रूप में सेवारत थे  जो उस समय जोरहाट असम में ये पोस्टेड थे।  इन्होंने कैसे किसके बनाम राणा किसके खिलाफ लाडा पहले रेस्पोंडेंट एडिशनल जिला कलेक्टर यानी अतिरिक्त जिला कलेक्टर प्राधिकारी , अधिकारी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण , सीकर राजस्थान  और प्रोजेक्ट डायरेक्टर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के जो प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे सीकर एक्सप्रेस वे के कार्यालय में झुंझुनू बाईपास पर उनके लिए और तीसरा प्रबंधक अखिल पूरा टोल प्लाजा प्रबंधक थे मैनेजमेंट वाले थे उन तीन के खिलाफ इन्होंने यह कोर्ट में कैसे डाला और उनको इन्होंने रेस्पोंडेंट बनाया।  अब देखें दोस्तों यह मुद्दा आगे कैसे चला और क्या-क्या चीज थी असली मुद्दा कहां से पहुंच यह देखें।  उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 (कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 ) जो की सरकार ने पार्लियामेंट में लोकसभा में 5 दिसंबर 1986 को पेस किया था उसकी धारा 12 के तहत इन्होंने ये कैसे फाइल किया।  

इस कैसे का संक्षिप्त रूप इस प्रकार है – फ्लाइंग ऑफिसर साहब  आसाम में कार्यरत थे और ये 25 जुलाई 2015 को छुट्टी आए थे।  उन्होंने छुट्टी के दौरान जयपुर से सीकर जा रहे थे और इनको अक्षय पूरा टोल पर रात के समय 8:41 और 27 सेकंड पर टोल पर टोल टैक्स मांगा गया।  इन्होंने बताया की मैं फौजी हूं और इन्होंने अपना आई कार्ड दिखाए ये साड़ी चीज दिखाने के बावजूद भी किसी ने इनकी बात नहीं मनी।  और इसे टोल लिया गया और बदतमीजी से भी आन पार्लियामेंट्री लैंग्वेज का इस्तेमाल भी किया गया।  तब इन्होंने जिसकी रसीद जो कटी टोल की रसीद संख्या  36241 और उसमें 35 रुपए इन से वसूल किया गए थे।  35 रुपए वसूल किया गए थे इनको यह चीज बड़ी हाटकी 35 रुपए का मेटर नहीं था बात थी कायदे कानून की।  कायदे कानून को इंकार किया गया टोल प्लाजा द्वारा।  सर्कार के तरफ से यह क्लियर आर्डर है की टोल प्लाजा पे जब भी कोई फौजी जाएगा तो खड़े होकर उसको रिस्पेक्ट सम्मान करना है।  दूसरे कायदे कानून जब उनका सर्विंग जवानों का डिफेंस पर्सनल का टोल टैक्स माफ है तो वो फिर वो भी लिया गया।  तो इस तरह से इनको बेइज्जती महसूस हुआ और इन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।  जब कोर्ट का दरवाजा खटखटा है तो दोनों तरफ से यानी इनकी तरफ से भी और इनके जो अपोनेंट थे उनकी तरफ से भी अलग-अलग दी गई दस्तावेज पेस किया गए जो दस्तावेज किया गया हैं अब देखिए रेस्पोंडेंट नंबर 2 की तरफ से यह कहा गया है की नेशनल हाईवे टोल टैक्स कलेक्शन रूल्स 2008 की धारा 11 के अनुसार यह कर्मचारी टोल टैक्स छठ के डेयर में नहीं आते हैं तो उनसे जो टोल टैक्स लिया और इनका मतलब ये है की जो उनसे लिया गया है वो उनकी नियमानुसार लिया गया है।  

उनके मुताबिक इसमें कुछ भी गलत नहीं है।  इसलिए इस कोड को यही खारिज कर दिया जाए यह रेस्पोंडेंट नंबर २  की डाली गई।  अब रेस्पोंडेंट नंबर दो की तरफ से क्या कहा गया है – भारत सरकार के सड़क पर वहीं एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी ऑफिस मेमोरेंडम दिनांक 17 जून 2014 की क्लोज 2 के तहत यह बताया गया है की एक्सेंप्शन अंदर दी इंडियन नेवी आर्मी और एयरफोर्स  पर्सोनेल को मिलेगा जब ऑन ड्यूटी यानी की जो ड्यूटी पर हैं वो एक्सेंप्शन सिर्फ उनके लिए है।  और दूसरा प्रोविसिन  उन्होंने बताया है की  रिटायर्ड पर्सन्स यानी की जो जब में है।  और जो जब में नहीं है उसके बारे में बताया गया है की जो ऑन ड्यूटी है वो एक्सेम्प्टेड है और जो एक्स सर्विसमैन हैं जो रिटायर्ड है वो एक्सेम्प्टेड नहीं है।  नो एक्सेम्पशन इस अवेलेबल ऑन पर्सनल व्हीकल।  यानी की यह भी क्लियर कहा है पर्सनल व्हीकल के लिए नहीं है अगर वह पर्सनल व्हीकल गवर्नमेंट ड्यूटी के लिए इस्तेमाल हो रहा है तब की बात होगी।  

पीटीसोनार  अपने पापा की गाड़ी से जा रहे थे।  तो यहां पर्सनल व्हीकल भी उनका खुद का नहीं था तो इस तरह से इनका ये कहना है की इस सबकी चीजों के मुताबिक इनको टोल टास्क्स रूल्स के मुताबिक ये कैसे यही क्लोज कर देना चाहिए।  इसमें आगे कोई गुंजाइश ही नहीं है।  इस तरीके की इन्होंने इसमें दलील दी तो अब देखिए दोस्तों यहां पर रेस्पोंडेंट नंबर २ तू ने जो कथन दिया जो स्टेटमेंट दिया जो सर्कुलर का हवाला दिया वो सबके अनुसार ये बैंड हो जाना चाहिए था इनको टोल टैक्स देना ही पड़ेगा लेकिन यहां पर इनकी तरफ से कहा गया की डिपार्मेंट ऑफ लीगल इस मिनिस्ट्री ऑफ लॉ  और जस्टिस के द्वारा जो एक सर्कुलर जारी किया गया था 21 अक्टूबर 2014 में उसकी प्रतिलिपि है उनके अनुसार कहा गया है मिनिस्ट्री ऑफ लॉ और जस्टिस हैव इंडिकेटेड that  इंडियन टूल्स आर्मी और और फोर्स एक्ट 1901 ए के स्पेशल है और प्राइवेट व्हीकल ऑफ डी ऑफिसर सोल्जर और मैन ऑफ रेगुलर फोर्सेस आर एक्सेम्प्टेड फ्रॉम इरेस्पेक्टिव ऑफ वेदर दी आर ऑन ड्यूटी और नोट।   

यानी यहां ये कहा गया है की सोल्जर है चाहे वो ड्यूटी पे हो चाहे नहीं हो उनको टोल एक्सेम्प्टेड है।  यहां पर यह स्पष्ट कहा गया है और मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड जस्टिस की तरफ से ये कहा गया है अब यहां पर देखिए दोस्तों दोनों में विरोधाभास है मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड जस्टिस क्या कह रहा है और जो सर्कुलर है ऑफिस मेमोरेंडम है जो 2014 को जारी हुए हैं वो क्या कह रहे हैं।  इनकी परिभाषा लोग अपने अपने हिसाब से निकाल रहे हैं लेकिन यहां पर जो ये फैसला कोर्ट में जब मुद्दा चला तो यहां क्या ये कोई अपनी मर्जी का चला है वहां भारत सरकार के जो न्याय प्रणाली है उसके तहत सारे फैक्टर को देखा जाता है साड़ी चीज पर स्टडी की जाति है तब जाके कोई फैसला निकाल के आता है।   साड़ी चीज वहां पर निकाल के साफ हो गई।  दूध का दूध पानी का पानी यानी एकदम साफ क्लियर और जजमेंट क्या सुनाया जजमेंट में क्या बताया अब हम सीधे जजमेंट की तरफ चलते हैं।  बाकी तो लंबी चौड़ी कहानी है उसको यहाँ आलोचना करने की कोई फायदा नहीं है।  जजमेंट में कहां गया  इस प्रकार है 👍

संक्षिप्त में की यह जो टोल लिया गया है 35 रुपए पहले तो वह वसूली जो किया गया उसको वापस किया जाए।  दूसरा 10000 रुपए उसको मानसिक संताप यानी की जो उसको मेंटल टॉर्चर हुआ है उन्होंने 80000 की मांग की थी 10000 रुपए बापस किया जायेगा टोल प्लाजा द्वारा।  दूसरा इनका जो खर्चा हुआ ये कैसे लड़ने में ₹3000 उसके लिए दिया जाए।  रेस्पोंडेंट दो और तीन थे उनको यानी एक तो जो प्रबंधन कर रहे थे टूल वाले वो और एक प्रधान कंपनी उनके लिए यह आदेश दिया है और जो स्पेशली मैनेजमेंट करने वाले थे प्रबंधन वाले रेस्पोंडेंट थी उनको आदेश दिया की वो 10000 रुपए तुरंत जमा करें राज उपभोक्ता कल्याण कोश में।  और जो रेस्पोंडेंट नंबर एक थे यानी एडिशनल जो जिला कलेक्टर थे उनको इससे बाहर कर दिया इस तरीके से यह निर्णय सुना  गया।  

दोस्तों 2018 में 27 फरवरी को यह फैसला किया कोर्ट की तरफ से – टोल कलेक्शन करने के संदर्भ में।  अब यह तब से अब तक भी तो टोल के बहुत सारे ऐसे इंसिडेंट आए हैं जगह-जगह पे मारपीट हुई है इंसल्ट  अभी भी हो रहे हैं।  क्या इस तरह की चीजों का प्रचार प्रसार नहीं होता है ?  ये चीज लोगों तक पहुंचती नहीं है।  कोई ऐसा मेकैनिज्म नहीं है की जो एकदम यह जो कायदे कानून है वह प्रॉपर उनको समझे।   रूल्स के अनुसार  काम हो।   न्यायालय में जाकर इस तरह का फैसला आता है  फिर भी टोल प्लाजा पर जाते हैं तो वहां पर जबरदस्ती पैसे की वसूली होती है।  

और यह शुरुआत कब से हुए जबसे फास्ट्रैक बने – लिए जब प्रोविजन है सर्विंग पर्सनाल  के लिए टोल में छूट है तो फिर उनको फ्री फास्ट ट्रैक बनवाने के लिए उनकी यूनिट के जो अधिकारी हैं क्यों नहीं सर्टिफिकेट देते ? क्योंकि फ्री फास्ट ट्रैक बने के लिए वहां पर एक सर्टिफिकेट की रिटायरमेंट है जो जवान सर्विस कर रहे हैं जो अधिकारी जैसी और जवान जीस  कमांड में सर्विस कर रहे हैं वहां के कमांड की तरफ से उनको एक सर्टिफिकेट चाहिए की यस ये पर्सनल व्हीकल है और यह उनके इस्तेमाल के लिए है तो अगर ऐसा होता है तो उनका फ्री फास्ट टैग बनेगा लेकिन वो सर्टिफिकेट मिलता नहीं है।  

कुछ लोग आते हैं अपने साथ में लीव सर्टिफिकेट लेकर आते हैं जब ये यहां पर क्लियर कट कहा गया है की चाहे वो ड्यूटी पे हो या ना हो उसके लिए बार-बार कहा गया है की सोल्जर 24 * 7 ड्यूटी पर ही राहते  है अब वह छुट्टी पर आया है रात को उसको मैसेज मिलेगा रिकॉल हो जाएगी तुरंत जाएगा  बापस।  अभी आपने एक इनसीडियस देखा होगा एक लड़की नदी में जंप लगे वहां पर हमारे एक सोल्जर ने अपनी जान को जोखिम में डाल के उसकी जान बचाई।  काफी चर्चा में रहा ट्विटर पर भी रहा जिसको सम्मानित भी किया गया।  ऐसे सोल्जर को तो गैलंट्री अवार्ड मिलन चाहिए।  और इस तरह के जो ये कायदे कानून है जो रूल रेगुलेशन की अवहेलना हो रही है इनको पेनलाइज करना चाहिए।