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OROP का इतिहास ज्यादातर पूर्व सैनिक जानते  है। हम OROP का इतिहास नहीं बल्कि गतिविधियों के आधार पर वर्तमान स्थिति और संभावनाओं पर चर्चा करेंगे। जुलाई 2014 से प्रभावी रूप से 2015 में भारतीय सशस्त्र बल पेंशनरों के लिए OROP लागू किया गया था। तब से Veterans के लिए पेंशन निर्धारण की नई प्रणाली के साथ विसंगति जारी रही। इस उद्देश्य के लिए गठित विभिन्न समिति की सिफारिश के अनुसार OROP के तौर-तरीकों के अनुसार किसी भी रैंक और सेवा अवधि की उच्चतम सीमा पर पेंशन तय की जानी चाहिए। जबकि न्यूनतम और अधिकतम पेंशन  (रैंक और सेवा लंबाई) के औसत से OROP पेंशन निर्धारित की जा रही है जो विरोधाभासी है और यह प्रणाली के उद्देश्य को ही विफल करता है।

व्यवस्था को प्रभावी बनाने और उससे सार्थक अर्थ निकालने के लिए पूर्व सैनिक तभी से सरकार को समझाने में लगे हैं। कमीशंड अधिकारियों पर ज्यादातर विसंगतियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि उनको ज्यादा से ज्यादा बेनिफिट आलरेडी मिल चूका है और अभी भी मिल रही है । वे 2002 से समयबद्ध पदोन्नति पाने के हकदार हैं। इसलिए उनका पेंशन लगभग सभी का equal होता है  और एवरेज पेंशन  हमेशा उनके लिए लाभ दायक होता है  । दूसरी ओर, पैदल सेना के एक पीबीओआर या एक ईएमई टेक व्यक्ति को लगभग 15 साल की सेवा प्रदान करने के बाद अपनी पहली पदोन्नति मिलती है । उनके समकक्ष, जिनकी संख्या बहुत कम है, 3 वर्ष की सेवा प्रदान करने के बाद समान पदोन्नति प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए, ऐसे जवानों के वेतन में बहुत बड़ा अंतर होता है और इसका असर पेंशन पर पड़ता है।

नतीजतन, किसी भी रैंक की न्यूनतम और अधिकतम औसत पेंशन एक बड़ा अंतर पैदा करती है और हमेशा पूर्व सैनिकों को OROP में लाभहीन बना देती है। OROP-II में 80% जवानों को एक पैसा नहीं मिला। जबकि अधिकारियों के मामले में केवल 10% हैं।

इसके अलावा, जवानों के लिए पेंशन में औसत वृद्धि 400 रुपये प्रति माह है। जबकि अधिकारियों के लिए औसत वृद्धि 8,500/- प्रति माह है जो 21 गुना से अधिक है।

विभिन्न ईएसएम संघों द्वारा कई बार उपयुक्त प्राधिकारी को आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, लेकिन सरकार ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है, क्योंकि यह समानता का सवाल है और कमीशन ने उन्हें कभी भी संभव नहीं होने दिया। अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी नीति और मानसिकता अभी भी भारतीय सशस्त्र सेना के अधिकारियों में मौजूद है। हाल ही में एक समाचार में यह प्रकाशित हुआ कि भारतीय सशस्त्र बलों के ब्रिटिश ढांचे में सुधार किया जा रहा है लेकिन अधिकारियों ने इसे लागू करने का विरोध किया।

 पटना उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक सदस्यीय न्यायिक समिति को वर्ष 2016 में सरकार को सौंप दिया गया था, लेकिन तब से यह गुप्त थी। अब, आरटीआई के माध्यम से रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से खोली गई है। प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ओआरओपी प्रणाली में सुधार के द्वारा कई चीजें लागू करने की आवश्यकता थी। हालांकि इस रिपोर्ट में औसत पेंशन या उच्चतम पेंशन के आधार पर पेंशन के तौर-तरीकों/पेंशन के निर्धारण के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है।

 उम्मीद है की आने वाले दिनों में सरकार जवानो के बारे में जरूर सोचेंगे और OROP का लाभ अधिकारीयों का जैसा जवानो को भी  मिलें  इसका ध्यान रखेंगे ।  जंतर मंतर में चल रही है OROP हक़ के लिए लड़ाई में  ज्यादा से ज्यादा लोगो का भाग लेना चाहिए ताकि सरकार को जवानो का बंचित रूप का पता चलें ।

N B. : The views on the subject matter is based on the feedback received from the environment. Publisher or author of this article has not expressed their personal opinion here.

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